जीवन चक्र के अनुसार वर्गीकरण
- एक वर्षी फसलें – ये फसलें अपना जीवन चक्र एक वर्ष या इससे कम समय में पूरा करती है जैसे – धान, गेहूॅ, जौ, चना, सोयाबीन
- द्विवर्षी फसलें – ऐसे पौधे में पहले वर्ष उनमें वानस्पतिक वृद्धि होती है और दूसरे वर्ष उनक फूल और बीज बनते हैं वे अपना जीवन चक्र दो वर्ष में पूरा करते हैं जैसे – चुकन्दर और गन्ना आदि
- बहुवर्षी फसलें – ऐसे पौधे अनेक वर्षों तक जीवित रहते हैं इनके जीवन चक्र में प्रतिवर्ष या एक वर्ष के अन्तराल पर फूल और फल आते हैं जैसे – लूसर्न, नेपियर घास
ऋतुओं के अधार पर वर्गीकरण
- खरीफ की फसल – इन फसलों को बोते समय अधिक तापमान एवं आद्रता तथा पकते समय शुष्क वातावरण की आवश्यता होती है उत्तर भारत में इसे जून-जुलाई में बोते हैं धान, बाजरा, मूॅंग, मूॅंगफली, गन्ना इस ऋतु की प्रमुख फसलें हैं
- रबी की फसल – इन फसलों को बोआई के समय तापमान तथा पकते समय शुष्क और गर्म वातावरण की आवश्यकता होती है ये फसलें अक्टूबर-नवम्बर में महीनों में बोई जाती हैंं गेहॅू, जौ, चना, मसूर, सरसोंं इस ऋतु की प्रमुख फसलें हैं
- जायद की फसल – येे फसलें मार्च-अप्रैल में बोई जाती है इस फसलें में तेज गर्मी और शुष्क हवाओं को सहन करने की अच्छी क्षमता होती है तरबूज, ककडी, खीरा, इस ऋतु की प्रमुख फसलें हैं
उपयोग के आधार पर वर्गीकरण
- हरी खाद की फसलें – इसके लिए फलीदार फसलें अधिक उपयुक्त होती है जैसे – सनई, ढैंचा, मूॅग, आदि
- भूमि संरक्षण फसलें – ये फसलें अत्यधिक वृद्धि के कारण भूमि को ढक लेती हैंं जिससे हवा तथा वर्षा से होने वाले कटाव से भूमि की रक्षा करती हैं जैसे – सोयाबीन, लोबिया, मूॅंग आदि
- नकदी फसलें – ये धन कमाने वाली फसलों के नाम से जानी जाती हैं जैसे – गन्ना, आलू, तम्बाकू, सोयाबीन आदि
- सूचक फसलें – यह फसलें जो पोषक पादार्थों की भूमि में कमी होने पर तुरन्त उनके ऊपर कमी के लक्षण प्रकट करने लगती है जैसे -मक्का
Saturday, September 22, 2018
फसल और उनका वर्गीकरण – Crop And Their Classification (Lekhpal & VDO Exam Special)
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