किसी समय की बात एक गांव में बहुत सारे लोग रहा करते थे। जिनमे से एक व्यक्ति अंधा था वह किसी भी चीज को देख नहीं सकता था। एक लंगड़ा व्यक्ति था जो देख तो सकता था पर चल नहीं सकता था एक दिन गांव में किसी कारण आग लग गई अंधा और लंगड़ा व्यक्ति दोनों मदद के लिए पुकारने लगे…
क्योंकि लंगड़ा आदमी देख तो सकता था मगर चाहते हुए भाग नहीं सकता था वही दूसरी तरफ बिल्कुल इसके विपरीत स्थिति थी अंधा आदमी देख नहीं सकता था पर भाग सकता था।
उनकी इसी कमजोरी के चलते वह बहुत चिल्लाये पर सभी लोगो ने उनकी पुकार को अनसुना कर दिया सभी अपनी-अपनी जान बचाकर एक-दूसरे को रौंदते भाग रहे थे।दोनों ने बहुत मदद मांगी पर कोई भी व्यक्ति आगे नहीं आया… सारा गांव देखते ही देखते खाली हो गया। यह देख लंगड़ा व्यक्ति अंधे से बोलै – हे मित्र! तुम मुझे अपनी ऊपर कंधे पर बैठा लो.. “आँख मेरी और पॉव तुम्हारे ” मतलब मैं तुम्हारे ऊपर बैठकर तुम्हे रास्ता बताता जाऊंगा इस तरिके से हम दोनों बच जायेगे।
अंधे में लगड़े व्यक्ति की बात मान ली जिससे वह दोनों बच गए…
इस कहानी का बड़ा ही सुन्दर तात्पर्य आज के जीवन से है –
जिस तरह आज के समय बुजुर्ग की आँख मतलब अनुभव और युवा के पाव मतलब मेहनत मिल जाये तो कोई भी काम बिना समय गवाये किया जा सकता है।
क्योंकि बुजुर्ग के पास वह अनुभव है जो युवा को कई वर्षो के बाद आएगा पर समय चला जायेगा और बुजुर्ग के पास अनुभव के आलावा अब कुछ भी नहीं है
परन्तु इस पूरे ब्रम्हांड में अनुभव जैसी कीमती दूसरी कोई भी मूल्यवान ज्ञान नहीं है।
Nice post . thanks
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