Useful Information about Jain Dharma in Hindi – जैन धर्म के बारेे में महत्वपूर्ण जानकारी
- जैन धर्म के संस्थापक ऋषभदेव (Rishabhdev) थेे
- तीर्थकर जैन धर्म के आचार्य कहलाते हैै
- जैन धर्म के अनुयायी के अनुुसाार प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव थे
- जैन धर्म के पार्श्वनाथ के अनुयायियों को निर्ग्रन्थ कहा जाता था
- पार्श्वनाथ ने भिक्षुुओं को श्वेत वस्त्र पहनने का आदेश दिया
- जैन धर्म के 24 वें तथा अन्तिम तीर्थकर महावीर स्वामी थे
- जैन धर्म का वास्तविक संस्थापक महावीर स्वामी को माना जाता हैै
- महावीर स्वामी (Mahavir Swami) का जन्म वैशाली के निकट कुण्डग्राम ज्ञातृक क्षत्रिय कुल केे प्रधान के यहॉ 540 ई० पू में हुआ था
- वर्धमान महावीर स्वामी केे वचपन का नाम था
- महावीर स्वामी की माता का नाम त्रिशाला (Trishala) था जो वैशााली की लिच्छवी राजकुमारी थी
- इनका विवाह यशोदा (Yashoda) नामक राजकुमारी से हुआ था
- महावीर स्वामी की पुत्री का नाम अनोज्जा प्रियदर्शनी तथा दामाद का नाम जामिल था
- 30 वर्ष की अवस्था में महावीर स्वामी ने अपने बडे भाई नन्दिवर्धन की अाज्ञा लेकर धर को त्याग दिया था
- महावीर स्वामी के धर त्याग देने के 12 वर्ष की गहन तपस्या के वाद जम्भिय ग्राम के निकट ऋजुपालिका नदी के तट पर एक साल वृक्ष के नीचे उन्हें केवल्य (ज्ञान) की प्राप्ति हुई
- महावीर ने अपने उपदेश प्राकृत (अर्धमागधी) भाषा में दिये थे
- ज्ञान प्राप्ति के पश्चिात महावीर स्वामी ने कोसल, मगध, मिथिला, चम्पा, वैैशाली, राजगृह, श्रावस्ती, अंग, आदि स्थानो का भ्रमण कर जैन मत का 30 वर्षों तक प्रचार प्रसार किया था
- महावीर स्वामी के प्रथम अनुयायी उनके दामाद जामिल बने थे
- प्रथम जैन भिक्षुणी नरेश दधिवाहन की पुत्री चम्पा थी
- महावीर स्वामी ने अपना पहला उपदेश राजगृह में दिया था
- महावीर ने अपने शिष्यों काेे 11 गणों में विभाजित किया था
- आर्य सुधर्मा अकेला ऐसा गन्धर्व था जो महावीर की मृत्यु के बाद भी जीवित रहा था
- आर्य सुधर्मा ही जैन धर्म का प्रथम थेेरा या मुख्य उपदेशक हुुआ था
- महावीर स्वामी का प्रतीक चिन्ह सिहं है
- पहली जैन सभा पाटिलपुत्र में 322 ई० पू० में भद्रबाहु और सम्भूति विजय के नेतृत्व में हुुई इसी सभा के बाद जैन धर्म दो भागों में विभाजित हो गया था
- श्वेताम्बर जो सफेद वस्त्र पहनते हैं
- दिगम्बर जो एकदम नग्नवास्था में रहते हैं
- मौर्योत्तर युग में मथुरा जैन धर्म का प्रमुख केन्द्र था
- जैन तीर्थकरों की जीवनी भद्रबाहु द्वारा रचित कल्पसूत्र में है
- जैन धर्म में ईश्वर की मान्यता नहीं हैं जैन धर्म में केवल आत्मा की मान्यता है
- सुजराहो के जैन मंंदिरों का निर्माण चंदेल शासकों ने कराया था
- जैन तीर्थकरों में संस्कृत का सबसे अच्छा विद्वान नयचन्द्र था
- लगभग 72 वर्ष की आयु में 468 ई०पू० में महावीर स्वामी की राजगृह के समीप पावापुरी में मल्लाराज सस्तिपाल के महल में मृत्यु हो गई थी
- रणथम्भौर के जैन मंंदिर का शिखर पृथ्वीराज चौहान (Prithvi Raj Chauhan) नेे बनवाया था
No comments:
Post a Comment