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Friday, October 26, 2018

भारत का प्रधानमंत्री ( The Prime Minister of India ) – से संबंधित समस्त जानकारी - UPTET,CTET,VDO,LEKHPAL Exam Special


भारत का प्रधानमंत्री (The Prime Minister of India)

भारतीय राजव्‍यवस्‍था में सर्वाधिक महत्‍वपूर्ण पद प्रधानमंत्री का होता है। औपचारिक दृष्टि से तो भारत में राज्‍य का प्रधान राष्‍ट्रपति होता है, किंतु वास्‍तविक शक्ति प्रधानमंत्री के हाथ में होती है, क्‍योंकि वह सरकार का प्रधान होता है। तकनीकी शब्‍दावली में कहा जाए तो राष्‍ट्रपति भारतका वैधानिक प्रमुख है जबकि प्रधानमंत्री वास्‍तविक प्रमुख।

प्रधानमंत्री की नियुक्ति (Appointment of the Prime Minister)

अनुच्‍छेद 75(1) में बताया गया है कि ”प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्‍ट्रपति करेगा और अन्‍य मंत्रियों की नियुक्ति राष्‍ट्रपति, प्रधानमंत्री की सलाह पर करेगा।”
‘प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्‍ट्रपति करेगा’इस कथन का अर्थ यह नहीं कि राष्‍ट्रपति अपनी इच्‍छा से किसी भी व्‍यक्ति को प्रधानमंत्री बना सकता है। यह शक्ति विवेकाधीन अवश्‍य है किंतु यह कुद संवैधानिक मर्यादाओं से बंधी है।
1983 में केंद्र-राज्‍य संबंधों पर विचार करने के लिये गठित सहकारिया आयोग ने 1988 में अपनी रिपोर्ट सौंपी जिसमें कुछ सुझाव दिये गए थे। आयोग ने यह सिफारिश की थी कि यदि किसी दल को लोकसभा में स्‍पष्‍ट बहुमत प्राप्‍त न हो तो राष्‍ट्रपति को विभिन्‍न विकल्‍पों को निम्‍नलिखित क्रम में स्‍वीकार्य करना चाहिये –
  • सबसे पहले चुनाव पूर्व हुए गठबंधन के नेता को बुलाना चाहिए, यदि उस गठबंधन के सदस्‍यों की संख्‍या अन्‍य किसी भी दल से चुनाव पूर्व गठबंधन के सदस्‍यों की संख्‍या से अधिक हो।
  • सबसे बड़े दल के नेता को बुलाया जाना चाहिए, जिसने दावा किया हो कि उसे कुछ अन्‍य दलों या निर्दलीय सदस्‍यों का समर्थन प्राप्‍त है।
  • उसके बाद चुनाव पश्‍चात् बने गठबंधन के नेता को बुलायाजाना चाहिए जो बहुमत का दावा कर रहा हो।
  • यदि सदन में अविश्‍वास प्रस्‍ताव लाया गया हो तथा सरकार गिर गई हो तो अविश्‍वास प्रस्‍ताव प्रस्‍तुत करने बाले विपक्ष के नेता को मौका दिया जाना चाहिए।
संविधान के अनुच्‍छेद 75(1) में कहा गया है कि- ”प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्‍ट्रपति करेगा और राष्‍ट्रपति अन्‍य मंत्रियों की नियुक्ति प्रधानमंत्री की सलाह पर करेगा तथा अनुच्‍छेद 75(2) में कहा गया है कि ”मंत्री राष्‍ट्रपति के प्रसादपर्यंत अपने पद धारण करेंगे।”
अनुच्‍छेद 75(1) के उपबंध के अनुसार यह ध्‍यान रखना ज़रूरी है कि इस संबंध में राष्‍ट्रपति के पास कोई विवेकाधिकार नहीं है। प्रधानमंत्री जिन भी व्‍यक्तियों की सूची राष्‍ट्रपति को सौंपता है, राष्‍ट्रपति को उन्‍हीं को मंत्री के रूप में नियुक्‍त करना होता है। इस दृष्टि से भारत का प्रधानमंत्री शेष मंत्रियों से काफी ताकतवर हो जाता है।
  • अनुच्‍छेद 75(2) में वर्णित उपबंध ‘मंत्री राष्‍ट्रपति के प्रसाद पर्यन्‍त अपनी पद धारण करेंगे’के संबंध में ध्‍यान रखना ज़रूरी है कि इसमें ‘राष्‍ट्रपति के प्रसाद’ का वास्‍तवित अर्थ’ प्रधानमंत्री के प्रसाद’ से है। क्‍योंकि राष्‍ट्रपति को प्रधानमंत्री की सलाह पर ही कार्य करना होता है।
  • प्रधानमंत्री अपनी इच्‍छा से किसी भी संसद सदस्‍य को मंत्री बना सकता है, मंत्रिपरिषद में उसका स्‍तर (जैसे कैबिनेट मंत्री या राज्‍यमंत्री) तय कर सकता है, उसे विशेष कार्य या विभाग आवंटित कर सकता है, उसके कार्य-निष्‍पादन की जाँच कर सकता है और जरूरत पड़नेपर उसे निर्देश भी दे सकता है।
  • प्रधानमंत्री विभिन्‍न मंत्रालयों में समन्‍वय स्‍थापित करने के लिये जिम्‍मेदार है। मंत्री का संबंध सिर्फ अपने विभाग या मंत्रालय से होता है जबकि प्रधानमंत्री का सभी मंत्रालयों और विभागों से।
  • मंत्रिमंडल और मंत्रिपरिषद की सभी बैठकों की अध्‍यक्षता प्रधानमंत्री ही करता है।
  • प्रधानमंत्री ही मंत्रिपरिषद और राष्‍ट्रपति को जोड़ने वाली कड़ी होता है। अनुच्‍छेद 78 के अनुसार प्रधानमंत्री का यह कर्तव्‍य होता है कि यह मंत्रिपरिषद के सभी निर्णयों से राष्‍ट्रपति को सूचित करे और यदि राष्‍ट्रपति कोई जानकारी मांगते हैं तो वह उन्‍हें दे।
  • यदि प्रधानमंत्री किसी मंत्री के कार्य-निष्‍पादन या आचरण से संतुष्‍ट नहीं है तो यह उससे त्‍यागपत्र की मांग कर सकता है और त्‍यागपत्र न मिलने की स्थिति में राष्‍ट्रपति को सलाह देकर उसे पद से हटवा भी सकता है।
  • किसी मंत्री की मृत्‍यु पर सरकार की स्थिति में कोई फर्क नहींआता, प्रधानमंत्री किसी अन्‍य व्‍यक्ति को वह मंत्रालय सौंप सकता है; किन्‍तु यदि प्रधानमंत्री की मृत्‍यु हो जाती है तो मंत्रिपरिषद अर्थात सरकार अपने आप विघटित हो जाती है। प्रधानमंत्री के बिना सरकार एक दिन भी नहीं चल सकती है।

प्रधानमंत्री के दायत्वि (Responsibilities of the Prime Minister)

संविधान में कई स्‍थानों पर प्रधानमंत्री के दायित्‍वों की प्रत्‍यक्ष या अप्रत्‍यक्ष चर्चा की गई है। समझने की सुविधा के लिये इन दायित्‍वों को कुद वर्गों में बाँटकर देखा जा सकता है।
प्रधानमंत्री के दायित्‍व :-
  • राष्‍ट्रपति के संबंध में दायित्‍व
  • मंत्रिपरिषद के संबंध में दायित्‍व
  • संसद के संबंध में दायित्‍व
  • प्रधानमंत्री के अन्‍य दायित्‍व

राष्‍ट्रपतिके संबंध में दायित्‍व (Responsibilities in regard to the president)

अनुच्‍छेद 78 में प्रधानमंत्री के कुछ कर्तव्‍यों की चर्चा की गई है जिनका संबंध मुख्‍यत: प्रधानमंत्री और राष्‍ट्रपति के बीच समन्‍वय बनाए रखने से है। इस अनुच्‍छेद में तीन खंड हैं जिनमें निम्‍न तीन दायित्‍वों का वर्णन किया गया है –
  • प्रधानमंत्री का यह कर्तव्‍य है कि वह केन्‍द्र सरकार के प्रशासन से संबंधित सभी निर्णयों तथा प्रस्‍तावित कानूनों की जानकारी राष्‍ट्रपति को प्रेषित करे। (अनुच्‍छेद 78(क))
  • यदि राष्‍ट्रपति द्वारा केन्‍द्र सरकार के प्रशासन या किसी प्रस्‍तावित कानून से संबंधित जानकारी मांगी जाती है तो प्रधानमंत्री का कर्तव्‍य होगा कि उसे ऐसी जानकारी उपलब्‍ध कराए। (अनुच्‍छेद 78(ख))
  • राष्‍ट्रपति को एक विशेषाधिकार दिया गया है। इसके अनुसार यदि किसी मंत्री ने किसी विषय पर कोई निर्णय कर दिया है किंतु मंत्रिपरिषदने उस पर विचार नहीं किया है तो राष्‍ट्रपति की अपेक्षा करने पर प्रधानमंत्री का कर्तव्‍य होगा कि वह उक्‍त निर्णय को मंत्रिपरिषद के समक्ष विचार के लिये रखें। (अनुच्‍छेद 78(ग))
इन तीनों प्रावधानों का मूल उद्देश्‍य कार्यपालिका के विभिन्‍न स्‍तरों राष्‍ट्रपति, प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद के बीच समन्‍वय स्‍थापित करना है जो कि उचित है।
  • वह राष्‍ट्रपति को विभिन्‍न अधिकारियों जैसे भारत का महान्‍यायवादी, भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक संघ लोक सेवा आयोग के अध्‍यक्ष एवं उसके सदस्‍यों, चुनाव आयुक्‍तों, वित्‍त आयोग का अध्‍यक्ष एवं उसके सदस्‍यों एवं अन्‍य की नियुक्ति के संबंध में परामर्श देता है।

मंत्रिपरिषद के संबंधमें दायित्‍व (Responsibilities in regard to the parliament)

प्रधानमंत्री संसद के प्राय: निचले सदन अर्थात् लोकसभा का नेता होता है। संसद के संबंध में वह निम्‍नलिखित कार्य करता है –
  • वह राष्‍ट्रपति को संसद के विभिन्‍न सत्र आहूत करने तथा सत्रावसान करने की सलाह देता है।
  • वह लोकसभा का विघटन करने से संबंधितनिर्णय भी कर सकताहै। सामान्‍य परिस्थितियों में राष्‍ट्रपति को उसकी यह सलाह माननी होती है।
  • वह स्‍वयं या किसी मंत्री को संसदीय कार्य का प्रभार देकर सुनिश्चित करता है कि लोकसभा और राज्‍यसभा के प्रशासनिक कार्यों में कोई समस्‍या उत्‍पन्‍न न हो।
  • वह संसद के समक्ष सरकार की नीतियाँ प्रस्‍तावित करता है।
उपरोक्‍त भूमिकाओं के अतिरिक्‍त प्रधानमंत्री की अन्‍य विभिन्‍न भूमिकाएँ भी है –
  • वह नीति आयोग (पूर्व में योजनाआयोग) का अध्‍यक्ष होता है।
  • वह राष्‍ट्रीय विकास परिषद तथा राष्‍ट्रीय एकतापरिषद का अध्‍यक्ष होता है।
  • वह अंतर्राज्‍यीय परिषद और राष्‍ट्रीय जल संसाधन परिषद का अध्‍यक्ष होता है।
  • वह राष्‍ट्र की विदेश नीति को मूर्त रूप देने में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • वह केंद्र सरकार का मुख्‍य प्रवक्‍ता है।
  • वह आपातकाल के दौरान राजनीतिक स्‍तर पर आपदा प्रबंधन का प्रमुख है।
  • देश का नेता होने के नाते वह विभिन्‍न राज्‍यों के विभिन्‍न वर्गों के लोगों से मिलता है और उनकी समस्‍याओं के संबंध में ज्ञापन प्राप्‍त करता है।
  • वह सत्‍ताधारी दल का नेता होता है तथा वह सेनाओं का राजनैतिक प्रमुखहोता है।
  • वह केन्‍द्र सरकार का प्रमुख प्रतिनिधि होने के नाते जनता और मीडिया के समक्ष सरकार के कार्य-कलाप तथा नीतियों से संबंधित पक्ष रखता है तथा उन नीतियोंपर प्रश्‍न उठाये जाने की स्थिति में सरकार की ओर से उत्‍तर देता है।
  • केंद्रीय कार्यपालिका का प्रमुख होने के नाते विभिन्‍न राज्‍यों की सरकारोंके साथ समन्‍वयन बनाए रखने में भी उनकी बड़ी भूमिका होतीहै।
  • देश की विदेश नीति के निर्माण तथा उसे लागू करने में मुख्‍य भूमिका प्रधानमंत्री की ही होती है। इस कार्य में विदेशमंत्री उसकी सहायता करता है किंतु बड़े नीतिगत निर्णयों पर प्रधानमंत्री को ही प्रमुख भूमिका निभानी होती है।

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