भारत का उपराष्ट्रपति
उपराष्ट्रपति का पद देश का दूसरा सर्वोच्च पद होता है। आधिकारिक क्रम में उसका पद राष्ट्रपति के बाद आता है। संविधान के अनुच्छेद 63-71 तक उपराष्ट्रपति पद से संबंधित प्रावधान दिये गए हैं। भारत का उपराष्ट्रपति वस्तुत: उन विरल परिस्थितियों में राष्टप्रति के कर्तव्य निभाने के लिये चुना जाता है, जब किसी कारण से राष्ट्रपति अपने पद का निर्वाह करने में सक्षम न हो। उपराष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन सभापति भी होता है।
राष्ट्रपति की तरह उपराष्ट्रपति भी जनता द्वारा सीधे नहीं चुना जाता बल्कि परोक्ष विधि से चुना जाता है। अनुच्छेद 66 में बताया गया है कि उपराष्ट्रपति का निर्वाचन किस प्रकार होगा।
- उपराष्ट्रपति का निर्वाचन संसद के दोनों सदनों के सदस्यों से मिलकर बनने वाले निर्वाचक मंडल द्वारा होगा। यह निर्वाचन ‘अानुपातिक प्रतिनिधित्व’ की पद्धति के अनुसार ‘एकल संक्रमणीय मत’ द्वारा होाग और इस निर्वाचन में मतदान गुप्त होगा। इस प्रावधान से स्पष्ट है कि ‘एकल संक्रमणीय मत’ तथा आनुपातिकप्रतिनिधित्व’ की दृष्टि से उपराष्ट्रपति का निर्वाचन पद्धति राष्ट्रपति के निर्वाचन पद्धति के समान ही है। इसके बाद भी राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के निर्वान की विधि में दो महत्वपूर्ण अंतर है जो इस प्रकार है –
- उपराष्ट्रपति के निर्वाचन में संसद के दोनों सदनों के सभी सदस्य भाग लेते हैं जबकि राष्ट्रपति के निर्वाचन में सिर्फ निर्वाचित सदस्य।
- जहाँ उपराष्ट्रपति के चुनाव में सिर्फ संसद के दोनों सदनों के सदस्य शामिल होते हैं, वहीं राष्ट्रपति के चुनाव में सभी राज्यों तथा दिल्ली व पुदुचेरी संघ राज्य क्षेत्रों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य भी शामिल होते हैं।
- राष्ट्रपति की तरह ही उपराष्ट्रपति के संबंध में भी यही उपबंध है कि वह संसद के किसी सदन या किसी राज्य के विधानमंडलके किसीसदन का सदस्य नहीं होगा और यदि वह इनमें से किसी भी सदन का सदस्य होते हुए उपराष्ट्रपति के पद पर निर्वाचित होता है तो यही समझा जाएगा कि उपराष्ट्रपति का पद ग्रहण करने की तारीख से उसने पूर्व के सदन की सदस्यता छोड़ दी है।
- राष्ट्रपति की तरह ही उपराष्ट्रपति बनने के लिये भी शर्त है कि उम्मीदवार भारत सरकार या किसी राज्य सरकार या स्थानीय प्राधिकारी या अन्य प्राधिकारी के अधीन लाभ का पद धारण न करता हो। इसमें स्पष्टीकरण दिया गया है कि इस अनुच्छेद के प्रयोजनों के लिए कोई व्यक्ति सिर्फ इसलिये लाभ का पद धारण करने वाला नहीं समझा जाएगा कि वह भारत का राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति, किसी राज्य की राज्यपाल या केन्द्र सरकार अथवा किसी राज्य सरकार का मंत्री है।
उपराष्ट्रपति पद के लिये अर्हताएँ (Eleigibilities for contesting vice-presidential election)
कोई व्यक्ति भारत का उपराष्ट्रपति निर्वाचित होने के लिये तभी अर्हत होगा जब वह निम्न तीन शर्तें पूरी करेगा –
- वह भारत का नागरिक हो।
- वह 35 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो।
- वह राज्यसभा का सदस्य निर्वाचित होने की अर्हताओं को पूरा करता हो।
गौरतलब है कि राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पद के प्रत्याशियों की अर्हताओं में एक ही अंतर है। राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के लिये लोकसभा सदस्य बनने की अर्हताओं को पूरा करना जरूरी है जबकि उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बनने के लिये जरूरी है कि वह राज्यसभा सदस्य होने की अर्हता रखता हो।
उपराष्ट्रपति की शपथ (Oath of vice-president)
पद ग्रहरण करने के पहले उपराष्ट्रपति को शपथ, राष्ट्रपति अथवा उनके द्वारा नियुक्त किसीव्यक्ति द्वारा दिलवाई जाती है। अपने शपथ में उपराष्ट्रपति, संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा तथा अपने कर्तव्य का निर्वाह श्रद्धापूर्वक करने की शपथ लेता है।
उपराष्ट्रपति की पदावधि तथा हटाए जाने की प्रक्रिया (The vice-president’s term and the procedure of his removal)
उपराष्ट्रपति की पदावधि उसके पद ग्रहण करने से लेकर 5 वर्ष तक होती है और वह दो आधारों पर इस अवधि के पहले अपने पद से मुक्त हो सकता है।
- वह राष्ट्रपति को संबोधित अपना हस्ताक्षरयुक्त त्यागपत्र दे दे।
- उसे पद से हटा दिया जाए।
उपराष्ट्रपति को हटाने के लिये औपचारिक महाभियोग की आवश्यकता नहीं है उसे राज्यसभाद्वारा संकल्प पारित कर पूर्ण बहुमत द्वारा हटाया जा सकता है। (अर्थात सदन के कुल सदस्यों का 50% + 1) साथ ही निम्न प्रक्रियाओं के माध्यम से –
- कम से कम 14 दिन पूर्व इस आशय की सूचना देना जरूरी है कि उपराष्ट्रपति को हटाने से संबंधित संकल्प प्रस्तुत किया जाने वाला है।
- ऐसा संकल्प राज्यसभा में ही रखा जा सकता है। उसका आधार कोई भी ऐसा कारण हो सकता है, जिसे राज्यसभा उचित समझती है।
- उपराष्ट्रपति को हटाए जाने के संकल्प को राज्यसभा की तात्कालीन समस्त सदस्य संख्या के बहुमत द्वारा पारित किया जाना जरूरीहै।
- राज्यसभा द्वारा संकल्प पारित किये जाने के बाद यह भी जरूरी है कि लोकसभा उस प्रस्ताव का समर्थन करे, लोकसभा में इसके लिये साधारण बहुमत ही पर्याप्त है
उपराष्ट्रपति के कार्य (Functions of the vice-president)
अनुच्छेद 64 और 65 में उपराष्ट्रपतियों के कार्यों का वर्णन किया गया है। उपराष्ट्रपति के निम्न कार्य है –
- वह राज्यसभा के पदेन सभापति के रूप में कार्य करता है। इस संदर्भ में उसकी शक्तियाँ व कार्य लोकसभा अध्यक्ष की ही भाँति होती है लेकिन वह राज्यसभा का सदस्य नहीं होता है।
इस सदन में वोटिंग के दौरान मत तो नहीं देता मगर अध्यक्ष की हैसियत से निर्णायक मत देने का अधिकारी है।
- जब राष्ट्रपति का पद उसके त्यागपत्र, महाभियोग, मृत्यु तथा अन्य कारणों से रिक्त हो जाता है तो वह कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में भी कार्य करता है। वह कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में अधिकतम् छह महीने की अवधि तक कार्य कर सकता है। इस अवधि में नए राष्ट्रपति का चुनाव ही जाना आवश्यक है। इसके अलावा वर्तमान राष्ट्रपति की अनुपस्थिति, बीमारीया अन्य किसी कारण से वह अपने दायित्वों का निर्वाह करने में असमर्थ हो तो उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति के पुन: कार्य पर लौटने तक उनके कर्तव्यों का निर्वाह करता है।
- कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में कार्यकरने के दौरान उपराष्ट्रपति राज्यसभा के सभापति के रूप में कार्य नहीं करता, इस अवधिमें उसके कार्यों का निर्वाह उप-सभापति द्वारा किया जाता है।
चुनाव विवाद (Election disputes)
उपराष्ट्रपति के चुनाव से संबंधित सभी विवादों की जाँच और निर्णय उच्चतम न्यायालय द्वारा किये जानते हैं जिसका निर्णय अंतिम होता है। उपराष्ट्रपति के चुनाव को इस आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती है कि चुनाव में निर्वाचक मंडल के सदस्य पूर्ण नहीं हैं।
यदि उच्चतम्न्यायालय द्वारा किसी व्यक्ति के उपराष्ट्रपति के पद पर निर्वाचन को अवैध घोषित किया जाता है तो उच्चतम् न्यायालय की घोषणा से पूर्व उसके द्वारा कियेगए कार्य अवैध घोषित नहीं होंगे वे प्रभावशाली रहेंगे।
राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति के पदों का एक साथ रिक्त होना
कभी कभी ऐसी स्थिति भी पैदा हो सकती है कि राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति दोनों पद पर एक साथ रिक्त हो जाए। संविधान में इस संबंध में कोई निश्चित प्रावधान नहीं दिया गया है किंतु अनुच्छेद 70 में संसद को यह शक्ति दी गई है कि वह इस प्रकार की आकस्मिकताओं के संबंध में ऐसे उपबंध कर सकेगी, जिन्हें वह ठीक समझती है।
संसद ने ‘राष्ट्रपति (कृत्यों का निर्वहन) अधिनियम, 1969’ पारित करके स्पष्ट किया है कि राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति दोनों के न होने की दशा में सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश राष्ट्रपति की भूमिका ग्रहण करेगा; और यदि वह पद भी खाली हो तो सर्वोच्च न्यायालय का वरिष्ठतम् न्यायाधीश राष्ट्रपतिका कार्य संभालेगा।
भारत एवं अमेरिकी उपराष्ट्रपतियों की तुलना (Comparison of the vice president of India and the vice president of the U.S.A.)
यद्यपि भारत के उपराष्ट्रपति का पद अमेरिका के उपराष्ट्रपति पद के मॉडल पर आधारित है, परंतु इसमें भिन्नता के काफी तत्व है। अमेरिका का उपराष्ट्रपति, राष्ट्रपति का पद रिक्त होने पर अपने पूर्व राष्ट्रपति के कार्यकाल की शेष अवधि तक उस पद पर बना रहता है। दूसरी ओर भारत का उपराष्ट्रपति, राष्ट्रपति का पद रिक्त होने पर, पूर्व राष्ट्रपति के शेष कार्यकाल तक उस पद पर नहीं रहता है। वह एक कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में तब तक कार्य करता है, जब तक कि नया राष्ट्रपति कार्यभार ग्रहण न कर ले और वह अध्ािगत 6 माह उस पद पर बना रह सकता है।
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