व्यक्ति कुछ कार्यों को करके सीखता है और कुछ कार्यों को दूसरों को करते देखकर सीखता है। परन्तु कुछ कार्य हम बिना बताये अपने आप ही सीख लेते हैं। इस प्रकार के सीखने को सूझ द्वारा सीखना कहते हैं।
गुड के अनुसार – “सूझ , वास्तविक स्तिथि का आकस्मिक और तात्कालिक ज्ञान है ”
सूझ के इस सिद्धान्त के प्रतिपादक जर्मनी के गेस्टाल्टवादी है। इसलिए कोफ्का, कोहलर, वरदाईमर के इस सिद्धानत को ‘गेस्टाल्टवादी सिद्धान्त’ भी कहते हैं। कोहलर के अनुसार किसी समस्या के आने पर व्यक्ति को अपनी मानसिक शक्ति द्वारा पूर्ण परिस्थिति का बोध हो जाता है और सूझ द्वारा अचानक उसका हल निकल आता है।
प्रयोगः- कोहलर महोदय ने सिद्धान्त के प्रतिपादन के लिए चिम्पैंजी और बन्दर आदि पर प्रयोग किये। कोहलर ने सुल्तान नामक एक चिम्पैंजी पर प्रयोग किया। चिम्पैंजी को उसने पिंजड़े में बन्द कर दिया और पिंजड़े की छत से केला लटका दिये। पिंजड़े के अन्दर दो छडि़यां एक छोटी व एक बड़ी रख दी गई, जो एक दूसरे में जोड़ी जा सकती थी। चिम्पैंजी ने बारी बारी से छडि़यों द्वारा केले को गिराने का प्रयास किया। परन्तु असफल रहा और निराश होकर बैठ गया। परन्तु केलों को प्राप्त करने की समस्व्या मन में बनी रही। फिर वो छडि़यों से खेलने लगा, अचानक छडिया एक दूसरे में घुस गई और जुड़ते ही उसमें सूझ उत्पन्न हो गई और दोनो छडि़यां जोड़कर केलों को गिराने में सफल हो गया। दूसरी बार वैसी ही समस्या आने पर एक ही बार में हल निकालने में सफल हो गया।
विशेषताएं
गुड के अनुसार – “सूझ , वास्तविक स्तिथि का आकस्मिक और तात्कालिक ज्ञान है ”
सूझ के इस सिद्धान्त के प्रतिपादक जर्मनी के गेस्टाल्टवादी है। इसलिए कोफ्का, कोहलर, वरदाईमर के इस सिद्धानत को ‘गेस्टाल्टवादी सिद्धान्त’ भी कहते हैं। कोहलर के अनुसार किसी समस्या के आने पर व्यक्ति को अपनी मानसिक शक्ति द्वारा पूर्ण परिस्थिति का बोध हो जाता है और सूझ द्वारा अचानक उसका हल निकल आता है।
प्रयोगः- कोहलर महोदय ने सिद्धान्त के प्रतिपादन के लिए चिम्पैंजी और बन्दर आदि पर प्रयोग किये। कोहलर ने सुल्तान नामक एक चिम्पैंजी पर प्रयोग किया। चिम्पैंजी को उसने पिंजड़े में बन्द कर दिया और पिंजड़े की छत से केला लटका दिये। पिंजड़े के अन्दर दो छडि़यां एक छोटी व एक बड़ी रख दी गई, जो एक दूसरे में जोड़ी जा सकती थी। चिम्पैंजी ने बारी बारी से छडि़यों द्वारा केले को गिराने का प्रयास किया। परन्तु असफल रहा और निराश होकर बैठ गया। परन्तु केलों को प्राप्त करने की समस्व्या मन में बनी रही। फिर वो छडि़यों से खेलने लगा, अचानक छडिया एक दूसरे में घुस गई और जुड़ते ही उसमें सूझ उत्पन्न हो गई और दोनो छडि़यां जोड़कर केलों को गिराने में सफल हो गया। दूसरी बार वैसी ही समस्या आने पर एक ही बार में हल निकालने में सफल हो गया।
विशेषताएं
- सूझ अचानक पैदा होती हैं।
- सीखने की प्रक्रिया संज्ञानात्मक होती है।
- सीखने की प्रकृति लगभग स्थायी होती है।
- सूझ के लिए समस्यात्मक परिस्थिति का होना अनिवार्य है।
- सूझ प्राणी के लक्ष्य और समाधान के बीच एक स्पष्ट सम्बन्ध की सूचक होती है।
- सूझ में समस्या का समाधान स्वतः मानसिक चिन्तन करने से मिल जाता है।
- यह सिद्धान्त रचनात्मक कार्यों के लिए उपयोगी है।
- इस सिद्धान्त से तर्क, कल्पना व चिन्तन शक्ति का विकास होता है।
- विज्ञान, गणित जैसे विषयों के शिक्षण में यह बहुत उपयोगी है।
- साहित्य, संगीत कला आदि की शिक्षा के लिए बहुत उपयोगी है।
- यह सिद्धान्त बालकों को स्वयं खोज करके ज्ञान अर्जित करने के लिए प्र्रेरित करता है।
- विद्यालय में बालक के समस्या समाधान पर आधारित अधिकांश सीखने में यह विधि उपयेागी है।
No comments:
Post a Comment